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15 August Independence Day

स्वतंत्रता दिवस — 15 अगस्त

जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा,
द्राविड़, उत्कल, बंग।
विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा।
उच्छल जलधि तरंग।
तव शुभ नामे जागे।
तव शुभ आशिष मागे।
गाहे तव जयगाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे।
भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।

आदरणीय प्राचार्य महोदय/महोदया, सम्मानीय अध्यापकगण, प्यारे अभिभावकगण और मेरे प्रिय साथियों — मैं आप सभी का हृदय से स्वागत करता/करती हूँ। आज हम यहाँ एक ऐसे दिन का स्मरण कर रहे हैं जो हमारे देश की पहचान, हमारे अस्तित्व और हमारी आन-बान-शान का प्रतीक है — स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त। आज का दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उन अनगिनत बलिदानों, संघर्षों और आशाओं का संगम है जिनके दम पर हमारा देश स्वतंत्र हुआ। हमें यह याद रखना है कि यह स्वतंत्रता विरासत नहीं, एक संघर्ष का परिणाम है — और उस संघर्ष के नायकों के त्याग के बिना यह कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इतिहास की एक झलक

1857 से लेकर 1947 तक अनेक दफे भारत के वीरों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई — कभी संवाद के द्वारा, कभी अहिंसा के मार्ग पर, और कभी सशक्त क्रांतिकारी कदमों के द्वारा। यह विविधता ही हमारी शक्ति थी: जहां महात्मा गांधी ने सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से जन-आंदोलन को एक नई दिशा दी, वहीं कई युवा क्रांतिकारियों ने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। 15 अगस्त 1947 वह क्षण था जब भारत ने औपचारिक रूप से स्वाधीनता प्राप्त की; परंतु स्वतंत्रता का अर्थ समय के साथ गहराया — यह केवल विदेशी शासन की समाप्ति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता, और हर नागरिक के सम्मान की प्राप्ति का मार्ग भी है।

महात्मा गांधी — सत्य और अहिंसा के पुरोधा

महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी — ‘बापू’ के नाम से जिन्हें हम प्यार से जानते हैं — ने अपना जीवन सत्य और अहिंसा की खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और सत्याग्रह की ऐसी रणनीतियाँ रचीं जिनसे करोड़ों लोग जुड़ गए। गांधीजी का संदेश सरल परन्तु शक्तिशाली था: शक्ति केवल हथियार में नहीं, बल्कि सत्य के साथ अडिग मन में निहित होती है। उनका आदर्श आज भी हमें सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना धैर्य, संयम और नैतिक दृढ़ता के साथ करना चाहिए।

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव — युवा क्रांति की आवाज

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव — ये नाम हमें बलिदान और निडरता की याद दिलाते हैं। वीरों का यह त्रय केवल क्रांतिकारी विचारों का प्रतिनिधि नहीं था, बल्कि उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि देश के प्रति प्रेम, न्याय की चाह और स्वाधीनता की लालसा कितनी प्रबल हो सकती है।

भगत सिंह ने अपनी लेखनी, अपने विचार और अपने कृत्यों से अंग्रेज़ी शासन के क्रूरपन और अन्याय को आम नागरिकों के चेतन में जागृत किया। उनके विचारों में समाजिक सुधार और युवाओं का राजनीतिक चेतना जागरण स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने यह माना कि केवल प्रत्यक्ष प्रतिरोध ही नहीं, बल्कि जनता में जागरूकता फैलाना भी उतना ही आवश्यक है।

शिवराम राजगुरु ने अपने साथियों के साथ मिलकर साहस और अनुशासन का परिचय दिया। उनका जीवन युवा उत्साह और समर्पण की मिसाल है। राजगुरु का साहस बताता है कि जब व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागकर देश की सेवा सर्वोपरि हो, तो युवा पीढ़ी किस तरह से आगे आ सकती है।

सुखदेव का नाम संयम और दृढ़ विश्वास के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने युग-परिवर्तन के लिए अपने व्यक्तित्व का बलिदान दिया और यह दिखाया कि सिद्धांतों के लिए मरना भी संभव है जब उस सिद्धांत से पूरे समाज का उत्थान जुड़ा हो।

उनके संदेश का आज का अर्थ

आज जब हम उन शहीदों के बलिदान का स्मरण करते हैं, तो सवाल उठता है — क्या हम उनके आदर्शों पर पूरा उतर रहे हैं? उनके त्याग का सच्चा सम्मान तब होगा जब हम अपने कर्तव्यों को समझें और उन्हें निभाएँ। हमारी लड़ाई केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की मैच नहीं रही; असली लड़ाई आज सामाजिक न्याय, आर्थिक समता और मानवीय गरिमा स्थापित करने की है। इन महान आत्माओं ने हमें यह सिखाया कि देश केवल सीमाओं का नाम नहीं, बल्कि लोगों की भलाई का प्रतीक है।

हमारी जिम्मेदारियाँ

स्वतंत्रता के साथ कई जिम्मेदारियाँ भी आती हैं — शिक्षा का प्रसार, भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध सतत प्रयत्न, समानता का संवर्धन, और पर्यावरण-संरक्षण। हमें सुनिश्चित करना होगा कि हर नागरिक को रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएँ और शिक्षा उपलब्ध हों। यदि हम नौजवानों को रोजगार दें, महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण करें और कमजोरों की सुरक्षा सुनिश्चित करें — तभी हमारे राष्ट्र का विकास सच्चा और टिकाऊ होगा।

एक छोटा सा संकल्प

आज के दिन हम संकल्प लें —

  • शिक्षा को प्राथमिकता दें और ज्ञान का दायरा बढ़ाएँ।
  • ईमानदारी और पारदर्शिता को अपनाएँ; भ्रष्टाचार से लड़ें।
  • प्रकृति का संरक्षण करें; सरल जीवन की ओर अग्रसर हों।
  • साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखें और सभी के साथ समान व्यवहार करें।
इन छोटे-छोटे कदमों से हम अपने स्वतंत्रता-वीरों के सपनों का भारत बना सकेंगे।

युवाओं के लिये प्रेरणा

युवा ही राष्ट्र की आत्मा हैं। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे युवा हमें स्मरण कराते हैं कि जजबा, अनुशासन और परोपकार से बड़ी से बड़ी चुनौती भी पार की जा सकती है। हमें अपने युवाओं को सही दिशा देना है — शिक्षा के साथ-साथ नैतिकता की भी सीख दें, ताकि वे केवल करियर-केंद्रित न हों, बल्कि समाज-सेवा और राष्ट्र-निर्माण में भी योगदान दें।

समापन

आज हम जो आज़ादी में सांस ले रहे हैं, वह अनगिनत बलिदानों का परिणाम है। महात्मा गांधी की अहिंसा, भगत सिंह की जुझारूपन, राजगुरु और सुखदेव का समर्पण — ये सब हमें सिखाते हैं कि आज़ादी की रक्षा और उसे सार्थक बनाना हम सभी की साझा जिम्मेदारी है। आइए, हम सब मिलकर वचन लें कि हम अपने देश को समृद्ध, सक्षम और सम्मानित बनाएँगे। अपनी श्रम-नीति, अपने विचारों और अपनी संवेदनशीलता से हम एक ऐसा भारत बनाएँगे जो न केवल आर्थिक रूप से प्रबल हो, बल्कि नैतिकता और इंसानियत में भी अग्रणी हो।

जय हिन्द!
वन्दे मातरम्!

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